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बस यूँही चला...
बस यूँही चला...
बस यूँही...
“
बस यूँही चला जाता हूँ
मंज़िल ए राह पे
पैरों में छालों की परवाह
किया बिना
मैं मज़दूर हूँ साहब
नहीं जी सकता
अपने स्वाभिमान के बिना
”
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