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बहुत-सी...

बहुत-सी बातें मन मुताबिक नहीं होतीं लेकिन बचपन इस सोच को स्वीकार नहीं करता और चाहता है-- हर चीज़ उसकी मर्ज़ी, मन मुताबिक, उसके इशारों पर चले, दौड़े, रुके, मिले।

By अख़लाक़ अहमद ज़ई
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