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"बहोत...
"बहोत परवाह करती...
"बहोत परवाह...
“
"बहोत परवाह करती हो मेरी,
फ़िर भी क्यु दूर रहती हो?
मिटादो ये शर्मकी दूरी" मुरली"
क्युं मुज़े बेताब बनाती हो?
-धनजीभाई गढीया" मुरली"
”
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