“
भोर की बेला देती संदेश
हिम्मत से आसमां की बुलंदी छुले
छोड दो रंजिशे जहां की वहां
अगर शांती से है जिना यहां
जीना सार्थक हो ऐसा कर्म कर तू आगे बढ़ता जा
समय की धारा किसी के बस में नहीं
और ना हालात बस में है
जिलो जिंदगी मिलती है मंज़िल तू चलता जा
शायद कभी दुबारा मौका न मिलेगा
छोड जाओ दुःख की गलियां कामयाबी मिलेगी
सिखाता सवेरा नया होता ही है बसेरा भी नया
बस उमंग के पंख लगाए
तू स्वप्न पखेरू बनकर उडता
”