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भले ही फेंक...

भले ही फेंक देते हाथ में लेकर एक बार, कर देते मेरे फूलों का गुलदस्ता ज़ार-ज़ार... कम्बख्त सुकून तो आता एक बार, कि मेरे इश्क को समझना चाहा था उन्होंने आखरी बार |

By Atul Tewari
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