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बेशुमार...
बेशुमार...
बेशुमार...
“
बेशुमार विविधताओं के बाद भी
प्रकृति के अंग- अंग में ही होती
है सुंदर गजब की लय।
ये सम्पूर्ण जगत ही तो है
एक विचित्र सा संग्रहालय।
# गायत्री सिंह #
”
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