“
अलग होकर पल भर को तुमसे
यह तो समझ ही पाया जानां
हर खुशी तुमसे ही है
जब सिर सहला कह जाती हो
पल की दूरी बेचैन करती है
संगी आप तो कहना हीं क्या
हर रस्म की रंगत
हर जख्म की राहत
हर कसम की चाहत
यही है सजन
सजी रहे यह जन्नत
लहलहाते जो पुष्प बगिया में अपने खिले हैं हमसे।।
⚘रा.जि.कुमार,
सासाराम।
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