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ऐ...
ऐ इन्साँ!
न बढ़ा...
ऐ इन्साँ!
न...
“
ऐ इन्साँ!
न बढ़ा अपनी जरूरतें,
न पहुँचा किसी को नुक्साँ।
न दिल किसी का इस कदर
दुःखा,
कल फिर निग़ाहों से मिलाना निगाहें,
न हो तेरे लिए आसाँ।।
”
200
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