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अच्छा बुरा...

अच्छा बुरा जो भी मिला तकदीर थी मेरी जमाने को कहा खबर होती ये तो बस पीर थी मेरी ऊंचे ख्वाब देख सकूं कहा थी हैसियत मेरी चाहत थी केतली के जगह किताब पकड़ने की थी मगर घर की हालत बदतर थी मेरी

By राजेश "बनारसी बाबू"
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