“
आज ज़ब मैं सोचती हूँ तो ये सोच से परे ही लगता है
वो कैसे लोग थे जो आज़ादी के लिए बलिदान कर दिए खुद को
इस समाज की जिसकी परिपाटी ऐसी की दिमाग़ में लोगों के बस यही रहता ये मेरे बाप की जागीर है
वहा पे लोग शहीद हो गए ताकि कोई प्रताड़ित ना रहे
देश समाज की उन्नति हो
कैसे वो लोग ये सोचते भी थे
मुझे तो समझ नहीं आता
मतलब सिर्फ मतलब नजर आता है
फिर ऐसे कैसे लोग आते है समाज बदलने को समाज से ही लड़ते है मरते
”