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जो न जाना...

जो न जाना है अभी तक मैं उसे पढ़ने चली हूँ। मैं विजय का लक्ष्य लेकर गिरि-शिखर चढ़ने चली हूँ।। भाव जो भी हीनता के नष्ट सारे हो सकेंगे, गर्व की अनुभूति वाली मूर्ति नव गढ़ने चली हूँ।।

By Anuja Manu
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