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और...
और कितना लिखूं...
और कितना...
“
और कितना लिखूं मैं तेरी याद में, कोई दम नहीं मेरी फरियाद में, रूह भी मेरी मुझसे छीन कर ले गई, मैं मैं ना रहा तेरे बाद में...
”
1934
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