Deepak Kumar
Literary Lieutenant
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।।अपनी मंजिल।। किसी दिन खुद की मंजिल ढूंढ ही लूंगा मैं। उसकी दूरियों को चलकर नाप ही लूंगा मैं। भटकने दो मुझको दर बदर, खाने दो मुझको ठोकरें इधर से उधर, किसी दिन खुद की मंजिल ढूंढ ही लूंगा मैं। उसकी दूरियों को चलकर नाप ही लूंगा मैं । अगर ना मिले मंजिल तो भी कोई गम नहीं, मेरी आखरी सांसों को ही मंजिल मान लूंगा, अपनी मौत से नजरें मिलाकर हंसता हुआ, इस जालिम जहां से रुखसत हो जाऊंगा मैं।।

जान हाजिर है इस जहां के लिए, मेरा हिंदुस्तान मेरा वतन के लिए, ना जानें कितनों की शहादत हुई, तब जाकर आजादी कबूल हुई भगत गुरु सुखदेव ऐसे दीवाने थे, जो हंसते हंसते फांसी पे झूले थे, याद करो उनको देश के नौजवानों, अपनी आजादी को बर्बाद ना करो, क्योंकि कीमत आजादी की हमने, अपने पुरखों के लहू से चुकाई है, तब जाकर आजादी पाई है।।।।।

मेरा मुकद्दर तो देखो, जिन रास्तों से मैं गुजरता हूं उनमें कांटे भरे होते हैं। फिर भी मंजिल की तलाश में, चलता रहता हूं।।।


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