हमें माफ करदे परवरदिगार, हम गुनहगार तेरी रहमत के तलबगार है,
इतनी भी क्या नाराजगी, शिशेसी जिंदगी दे कर हाथमें पत्थर उठा लिया है!
तुम जाना हो तो चले जाना अलविदा कहेने के बाद,
मैं वहीं ठहर जाऊंगी तुम्हारे वापस आनेके इंतजार में।
हद में रहो कह कर वो हंस कर चले गए ,
इश्ककी इन्तहा मगर हम ढूंढ नहीं पाए !
मेरे अल्फाजकी रवानी उन्हें पसंद नहीं आईं है शायद,
उसकी गहराई समझ कर मुझे माफ करदेंगे शायद।
इंसान हैं सभी दुनिया में कोई भगवान तो नहीं,
गुस्ताखी होती हैं मुकम्मल होनेका दावा तो नहीं।
हैरान मत हो मेरे बालम मैं टूट के बिखरने वाली नहीं हूं ,
सब्र मेरे साथ है मैं उसकी उंगली पकड़के चल रही हूं।
एक मुद्दत तक इंतजार करना पड़ता है हासिल करने लिए,
इश्क वो शेय नहीं जो एक बारमें मुकम्मल हो जाय।
मेरी बेवफाईयां की बात छोड़ो तुमने दूसरी बातों का भी तजकिरा नहीं किया,
लाख ऐब होनेके बाबजूद तुमने जमाने के सामने मुझे रुसवा नहीं किया।
खुशफेहमीयां पाल रखी थी इश्क के बारेमें,
आतिश का दरिया होगा हम नहीं जानते थे।