Gaurav Dhaudiyal
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सभी के बारे में कुछ ना कुछ बताने के लिए होता ही है मगर ऐसा क्या है जो हम सभी में एक ही जैसा है हम सभी के मन में कई सवाल है में भी कुछ सवालों के जवाब ढूंढ रहा हूं ख़ामोश होकर बस जवाबो को महसूस कर रहा हूं

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मन समंदर सोच की ये लहरें जज़्बातों के तूफ़ान में भला अब ये मन कैसे ठहरे ठहराव के उस पल में ज़ख़्म भी कई गहरे तू तो चला गया पार मेरे समंदर के मगर तेरी यादों के निशान अभी भी मुझमें ठहरे

अपने गांव को छोड़कर शहरो की ऊंची दीवारों के बीच एक परिंदा हमेशा यही सोचता हैं ओ परिंदे तू भटकता आया क्यूं इधर न तेरी मां इधर है न तेरा घर न तेरा पिता इधर है न तेरा पता इधर

हसरते भी टूटी सपनों के समंदर में हज़ारों तूफान भी आए अपने भी मुझसे रूठे कर्तव्यों के पथ पर कई ऐरावत भी आए वेदनाओं की लपटों ने प्रबल प्रयत्न से मेरे बड़ते कदम भी झुलसाए गिरकर उठा हूं कुछ कदम चल फिर से गिरा हूं जख्मों से लिपटे मेरे मन को जीत का आज भी यकीन है जिंदगी तू फिर भी हसीन है अपने होने पे मुझे आज भी यकीन है

" तू हसरत नहीं बस मंज़िल है मेरी कोई ख्वाब नहीं हकीकत है तू मेरी में कैसे भूल जाऊ तुझे याद करना तू किस्सा नहीं पूरी कहानी है मेरी "

कहा था लोगो ने उसकी तारीफ में कुछ किताबो के लफ्ज़ कहने को में करीब आया उसके पहले तो मोहब्बत हुई फिर उसके इश्क में हम ही गालिब बन गए

कुछ उलझने है शायद हम दोनों के दरमियान शिकवे है शायद कुछ बातो के बेहिसाब मोहब्बत कम नहीं बस वक्त गलत था ना तू गलत थी और ना में गलत था दोनों ही मुसाफिर है इस रिश्ते के कुछ कदम तुम चल जाओ कुछ हम चल लेंगे

वो आफताब भी इश्क़ का स्वाभाविक ढंग दिखाता है खुद ढलता है मगर आसमान में नया रंग खिलाता है

गुरूर था जो हमारा वो अब बिखर सा गया है आइने में एक शक्ष निखर सा गया है। ऐतबार का वो आलम अब सिमट सा गया है अब जो बचा है मुझसे वो कुछ सिमट सा गया है ।।।

वो पूछे की क्यों पीते हो अकेले हमने कहा गम ज्यादा है और लोग कम


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