None I'm Teacher Education department Uttarakhand
Share with friendsश्याम अब्र गगन पर छाये विरहन के मन को तड़पाये सांझ सकारे तेरा पंथ निहारे नयन नीर झरे दिल भी हारे इंदु कोठारी ✍️
कर गुंजित वह कुंज गली उपजा मधुकर हिय अनुराग हुआ सुवासित सारा उपवन बिखरा परिमल झरा पराग इंदु कोठारी ✍️
नसीर बना कर पंछी को क्यों निज भाषा सिखा रहे मानव हो मानव ही बने रहो क्यों यह दानवता दिखा रहे इंदु कोठारी ✍️
उदयाचल पर देख भानु को हर्षाया व्योम धरा मुस्कराई हो सर्वत्र समता विश्वबंधुत्व दिखे मानव मन की परसाई इंदु कोठारी ✍️