प्रिय साथियो कहानी,कविता उपन्यास लिखना मेरा शौक है। सामाजिक कुरूतियो पर व्यंग्य करना ,उनके विरुद्ध जागरूकता पैदा करना ही मेरा ध्येय है
Share with friendsतुम क्यूं फूल रहे हो साहिब, तुमसे कौन डरता है? अरे हमे तो डर, अपनो से लगता है, जाने, कहां से खंजर मारेंगे? "ए.दलाल"
मैं सिर्फ घरवालों से हार सकता हूं, क्योंकि वे जानते है कि मैं उनसे लड़ नहीं सकता। वर्ना हम दुनियां से लड़ भी सकते हैं, और झुका भी सकते हैं ।।
बहुत याद आती है , वो लड़की । बड़ा सताती है , वो लड़की । पलके भीग जाती हैं,याद में उसके जाने कहाँ ग़ुम है, वो लड़की ।।