Ajeet dalal
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प्रिय साथियो कहानी,कविता उपन्यास लिखना मेरा शौक है। सामाजिक कुरूतियो पर व्यंग्य करना ,उनके विरुद्ध जागरूकता पैदा करना ही मेरा ध्येय है

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तुम क्यूं फूल रहे हो साहिब, तुमसे कौन डरता है? अरे हमे तो डर, अपनो से लगता है, जाने, कहां से खंजर मारेंगे? "ए.दलाल"

बचपन से थी तमन्ना, आसमान में उड़ने की।। पर जब वक्त आया उड़ने का तो दगा दे दिया पखों ने ।।

मैं सिर्फ घरवालों से हार सकता हूं, क्योंकि वे जानते है कि मैं उनसे लड़ नहीं सकता। वर्ना हम दुनियां से लड़ भी सकते हैं, और झुका भी सकते हैं ।।

बहुत याद आती है , वो लड़की । बड़ा सताती है , वो लड़की । पलके भीग जाती हैं,याद में उसके जाने कहाँ ग़ुम है, वो लड़की ।।

वक्त की रेस में, पिछड़ गए हम तो अजीत । जमाना मतलबियों का था , और हम प्यार लुटाते गए ।

"क्या होता ? जो वक्त ने मरहम ना लगाया होता। आपने तो बीच मझधार छोड़ ही दिया था।"

"जिंदगी में आगे बढ़ना है तो, दो कदम पीछे हटना सीखो ।शेर भी वार करने से पहले , दो कदम पीछे हटता है"

"ये कैसी ,मोहब्बत है कि उसे पाकर भी, उसे अपना नहीं , कह सकते"💐

"गलतफहमियां, तब शुरू होती हैं। जब बातों का सिलसिला, बंद हो जाता है"


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