कलम की ताकत है यही जो राह दे समाज को नयी मैं कविता और गाने लिखता हूँ,क्रिकेट का अच्छा खिलाड़ी रहा हूँ और अपने विद्यालय के दिनों में अच्छा वक्ता रहा हूँ॥
Share with friendsहै इंतजार आज भी, तुमसे मिलने का। हर दिन खोलकर दरवाजा, निहारूँ मैं रास्ता। सुकून नहीं मिलता आज भी, इन आँखों को सजना। लाल साड़ी,चूड़ी और गजरा, यही है मेरा श्रृंगार सारा। ©®धीरज कुमार शुक्ला'फाल्गुन' झालावाड़,राजस्थान
हर ऑंख से ऑंसू बहते हैं जब कमी किसी की खलती है मजबूत होता है वो शख्स जो अपने दर्द में रोता है परवाह नहीं होती दुनिया की ना इस बात की की लोग क्या कहेंगे ©®धीरज कुमार शुक्ला'दर्श'
" शिक्षा अगर मातृभाषा में हो तो संस्कार देती है शिक्षा अगर विदेशी भाषा में हो तो संस्कार छीन लेती है॥" ©®धीरज कुमार शुक्ला'दर्श'
वक्त आ गया पंख फैलाने का एक साथ मिल परवाज भरने का दूर है गगन तो दूर ही सही है हूनर उस आसमां को छूने का ©®धीरज कुमार शुक्ला'दर्श'