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निभाने हम कितने रिश्ते चले थे वादा हाथ और प्यार दिल में लिए मंज़र कुछ यूँ होते गए हम दोस्त कम सामान ज़्यादा होते गए सब कुछ किनारा किया पर आत्म सम्मान अब खड़ा हुआ था हम दिल से वो दिमाग से निभा रहे थे " पैरासाइट " सा हम कुछ पाले जा रहे थे