Archana kochar Sugandha
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लिखने में हद से भी ज्यादा जुनूनी

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टूटती सांसे, यम के दूत खड़े थे पास जिंदगी की खूबसूरती का, तभी हुआ आभास । अर्चना कोचर

जिंदादिली के नारे लिखता हूँ आँखों देखे नजारे लिखता हूँ लगाई-बुझाई पर कौन करें यकीन मैं केवल दर्द हमारे-तुम्हारे लिखता हूँ । अर्चना कोचर

जब बड़ी मुश्किलों से गुजारा होता था पास अपनों की दौलत का जमावड़ा होता था। जबसे दौलत का पिटारा खुला है अपनों का साथ नपा-तुला हैं। अर्चना कोचर

पैसों से गरीब थे रिश्ते अमीर थे पैसों से अमीर होते ही रिश्ते गरीब हो गए। अर्चना कोचर

जानती हूं एक सौदागर को जो हर घड़ी मौत का सामान बाँटता है दौलत का शहंशाह केवल जिंदगी के इम्तिहान बाँटता है । अर्चना कोचर

दौलत का नशा बुझने नहीं देता मन की प्यास आधी रोटी से भी जग जाती है जीवन जोत की आस। अर्चना कोचर

ए दोस्त गिले-शिकवों में कमी ना थी आँखों में उसके कभी नमी ना थी लगाई-बुझाई की फितरत यत्न कर हारी मगर डोर दोस्ती की कभी थमी ना थी । अर्चना कोचर ©️

ए दोस्त गिले-शिकवे बहुत है मगर मोहब्बत भी कम नहीं है पढ़ ली जाती है चेहरों की बनावट अहसास के आभास भी कम नहीं है। अर्चना कोचर

अंदाज़ सुरों के ठहरे हैं आजाद, आजादी पर बड़े पहरे हैं। अर्चना कोचर


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