@archana-kochar-sugandha

Archana kochar Sugandha
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लिखने में हद से भी ज्यादा जुनूनी

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अयोध्या कोई जीत-हार का, अखाड़ा नहीं राजनीति का बजता हुआ, नगाड़ा नहीं अयोध्या नगरी है, राम कर्म महान की तुष्टिकरण करते हुए, क्यों विचारा नहीं ?  अर्चना कोचर

चार दिन की यह जिंदगी एक दिन आने में लग गई एक दिन जाने में लग गई बाकी दिन कमाने में लग गई। अर्चना कोचर

चार दिन की यह जिंदगी एक दिन आने में लग गई एक दिन जाने में लग गई बाकी दिन कमाने में लग गई। अर्चना कोचर

चार दिन की यह जिंदगी एक दिन आने में लग गई एक दिन जाने में लग गई बाकी दिन कमाने में लग गई। अर्चना कोचर

जब बिलखी बेदर्दियां, दीवारें गई थी सहम  दया-धर्म के इस जहान में, किस कोने बची है रहम। अर्चना कोचर

कागज-कलम और दवात करते है उद्धार  ज्यादा न सताओ, इन पर बढ़ता है भार । अर्चना कोचर

टूटती सांसे, यम के दूत खड़े थे पास जिंदगी की खूबसूरती का, तभी हुआ आभास । अर्चना कोचर

जिंदादिली के नारे लिखता हूँ आँखों देखे नजारे लिखता हूँ लगाई-बुझाई पर कौन करें यकीन मैं केवल दर्द हमारे-तुम्हारे लिखता हूँ । अर्चना कोचर

जब बड़ी मुश्किलों से गुजारा होता था पास अपनों की दौलत का जमावड़ा होता था। जबसे दौलत का पिटारा खुला है अपनों का साथ नपा-तुला हैं। अर्चना कोचर


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