Ankita Yadav
Literary Captain
AUTHOR OF THE YEAR 2021 - NOMINEE

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मौजूद तो हूँ मैं दुनिया की भीड़ में पर अब तलाश अपने वजूद की हैं "तलाश मेरी खत्म होती नहीं है रोज सीढियां चढ़ते चढते ख़ुद फिर भी में सिमट जाता हूं मैं हर रोज़ खुद में खुद को ढूंढ लेता हूं ख्वाहिश बड़ी मुश्किल है सपनों की दुनिया को पाने में फिर भी ढूंढता रहता हूं खुद को ख़ुद की तलाश में

दिल भी कितनी अजीब ख्वाहिश रखता है साथ कोई समझौता कर नही सकता और दिल उसकी तमन्ना

सीखा समझा फिर भूल गए ये जाते हुए दिसंबर सिखा गया क़रीब रहो फिर भी सालों तक इंतज़ार करो

ढल रही है एक और शाम तेरी याद में तेरी गैर मौजूदगी में भी कितना मौजूद रहती है

सुनो ज़िंदगी हर बार छीन लेना क्या बेहतर है सब कुछ ठीक होने के नाम पर

सुकून की बात न कर एं गालिब बचपन वाला इतवार अब कहा नहीं आता

ज़ख्म तो आज भी ताज़ा हैं बस निशान चला गया मोहब्बत तो आज भी है बस वो इंसान चला गया

किसी एक ख़ुशी के इंतज़ार में मैंने पूरी ज़िंदगी दाव पर लगाई थी कुछ यूं प्यार का गुन्हा मैंने कबूल किया था

दर्द सबका एक है मगर ज़िंदगी सबकी अलग सी हैं कोई मुस्कुरा के जी रहा है तो कोई दर्द जीने की राह बना के


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