प्रतिपल खोजता हूँ स्वयं को क्या! मेरा प्रारब्ध है शिखर समेरू हूँ ? या अतल गहराई समुद्र की ? प्रतिपल खोजता हूँ स्वयं को क्या! मेरा आरंभ था केवल मनुष्य था? या इससे कुछ और था? प्रतिपल खोजता हूँ स्वयं को क्या! मेरा वर्ग है केवल जाति ही है? या मानवता पहचान है? प्रतिपल खोजता हूँ स्वयं को... Read more
Share with friendsजिस पथ पर तुम बड़ रहें अभिमान में, सुनों लो मेरे हे भारतीयों! तुम हो अभी गुमान में, आपस में लड़ कर अपनी ही पहचान तुम भूला रहें, क्यों अच्छें-ख़ासे लोकतंत्र को राजतंत्र बना रहें, आदित्य चंद्रा
चाहों यदि तुम मृत्यु भी, तो प्राप्त कर सकते नहीं ये कर्म हैं इस पर बढ़ो, इसे त्याग तुम सकते नहीं होते बड़े वो वीर हैं जो, अडिग रहते इस पर सदा कर्मपथ से ही मुक्ति हैं, इतिहास में खोजों भला....