ख़ुद को खोकर,
पाया तुझे।
तुझे खोकर,
अब क्या पाऊँ?
अफ़वाह!
एक ऐसा खंजर,
जो किसी की भी दुनिया मिटाने की ताक़त रखता है।
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ज़िंदगी में थोड़ी ख़ुशी बाकी है।
रिश्तों में, अभी नमी बाकी है।।
मेरी कब्र पर आकर रोने वाले!
अब हम ज़िंदा नहीं होने वाले।।
क्रोध, रिश्तों और स्वयं को खा जाता है।
जैसे प्रकृति में सब कुछ बदलता है।
वैसे ही जीवन में भी बदलाव आवश्यक है।
अपनों में,
अपनों की,
पहचान ज़रूरी है।
अपनी खातिर तो, बहुत जी चुके।
अब औरों की खातिर, जीना सीखें।।
Sometimes distance defines relationships.