त्याग, समर्पणातून देशसेवा घडावी .जनजागॄतीस्तव लेखणी माझी झिजावी. साहित्य हे समाज जीवनाचा जणू आरसाचं , जिवनाचे सर्व पैलू त्यात उमट्ले पाहीजेत.
Share with friendsहम दिमाग से ज्यादा दिल से सोचते हैं इसलिए हर बार नाकामयाब होते हैं हम चाहते हुए भी चुप नहीं रह सकते हम दीवानों की बात मत पूछो जी .... इंसान के दुःखदर्द से हम तिलमिला उठते तो हैं पशु .पंछी कीड़े मकोड़े का भी दर्द महसूस करते हैं दिन रात ,सोत