Abasaheb Mhaske
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त्याग, समर्पणातून देशसेवा घडावी .जनजागॄतीस्तव लेखणी माझी झिजावी. साहित्य हे समाज जीवनाचा जणू आरसाचं , जिवनाचे सर्व पैलू त्यात उमट्ले पाहीजेत.

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हम दिमाग से ज्यादा दिल से सोचते हैं इसलिए हर बार नाकामयाब होते हैं हम चाहते हुए भी चुप नहीं रह सकते हम दीवानों की बात मत पूछो जी .... इंसान के दुःखदर्द से हम तिलमिला उठते तो हैं पशु .पंछी कीड़े मकोड़े का भी दर्द महसूस करते हैं दिन रात ,सोत

HUM KAUN HAIN NAHI PATA HUM SE HO NA KOI KHATA MAGAR LIKHTE RAHENGE YAH HAIN HAMARA VADA ABASAHEB MHASKE


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