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सौरभ कृष्णवंशी
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मेरी कविता से कोई आहत न हो,।

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तू बन गया है रूह मेरी, जिस्म की बात अब करूं कैसे। कम पङ जाते हैं लब्ज मोहब्बत में तेरी, तुझे बिन अल्फाज अब लिखूं कैसे। तेरे आने से खिल गयी है बहारे, बिन तेरे कटे पतझङ का जिक्र अब करूं कैसे।

जो फकी़री मिज़ाज रखते हैं, वो ठोकरों पे ताज रखते हैं। जिन को कल की फिकर नहीं, वो मुट्ठी मे आज रखतें हैं। एक पल मे बिखर जाऐं एसा होगा कैसे, खुद को संभालने का का ऐसा अंदाज़ रखतें हैं। जो फकी़री मिज़ाज रखते हैं, वो ठोकरों पे ताज रखते हैं। जिन को कल

यकीन न था उनको मेरी मुहब्बत पे, पर मेरे लिए तो वही खास था,। जित लेते दिल तेरा पर क्या करें, एक ही चेहरा मेरे पास था।

Raaz kai hai dil Me chhupaye baitha hu, Khanjar dil me dhasae baitha hu, Sun sakte ho to sun lo chikh meri, Tumhare lautne ki aas lagae baitha hu....


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