मेरी कविता से कोई आहत न हो,।
Share with friendsतू बन गया है रूह मेरी, जिस्म की बात अब करूं कैसे। कम पङ जाते हैं लब्ज मोहब्बत में तेरी, तुझे बिन अल्फाज अब लिखूं कैसे। तेरे आने से खिल गयी है बहारे, बिन तेरे कटे पतझङ का जिक्र अब करूं कैसे।
जो फकी़री मिज़ाज रखते हैं, वो ठोकरों पे ताज रखते हैं। जिन को कल की फिकर नहीं, वो मुट्ठी मे आज रखतें हैं। एक पल मे बिखर जाऐं एसा होगा कैसे, खुद को संभालने का का ऐसा अंदाज़ रखतें हैं। जो फकी़री मिज़ाज रखते हैं, वो ठोकरों पे ताज रखते हैं। जिन को कल
यकीन न था उनको मेरी मुहब्बत पे, पर मेरे लिए तो वही खास था,। जित लेते दिल तेरा पर क्या करें, एक ही चेहरा मेरे पास था।