शिक्षा के मंदिर विद्यालयों का विलय हो गया,
निजी संस्थानों का आपस में समंव्यय हो गया,
इनके लूट में सभी का पैसा इतना व्यय हो गया,
कि अभिवावको का वेतन बच्चो के लिए विषय हो गया |
मेरे देश में समाये हैं सारे मजहब,
प्रेम और शांति के वार्ता को देता है अदब,
डुबाना चाहा कितनो ने इसका आफ़ताब,
भूल गए वो की काँटों के बीच में भी खिलता है गुलाब |