"हकीकत में थोड़ा जहर पीना चाहती हूँ, शायद इसीलिए जीना चाहती हूँ |" "मैं से शुरू की,मैं पे खत्म की तो फिर तुमने, अपनी जिंदगी सही मायने में कहाँ जी "!
Share with friendsशातिर दुनिया की चालों में मासूमियत उजड़ती गयी बिक गयी अच्छाई रूह की कीमत पर साँसे बस बाजार की तरह चलती गयी |
जिंदगी के इस बगीचे में हमने भ्रम के कई पौधे रोप रखे हैं जिन पर अक्सर खिला करते हैं कल्पनाओं के कुछ खूबसूरत फूल और कभी उगते हैं अनुभवों के कुछ कैक्टस| सुरभि शर्मा
ज्यादा मशहूर होना भी अच्छा नहीं साहब चाशनी में पगे मीठे रिश्तों के कड़वे सच सामने आने लगते हैं | सुरभि शर्मा
ज्यादा मशहूर होना भी अच्छा नहीं साहब, चाशनी में पगे मीठे रिश्तों के कड़वे सच सामने आने लगते हैं | सुरभि शर्मा
सितारों की जगमगाती महफिल में, ए चाँद! तू क्यों तन्हा गुनगुना रहा है? क्या तुझे भी कोई अपना बेइंतहा याद आ रहा है? सुरभि शर्मा