हे आदिशक्ति जगदम्बे महारानी,तेरी शरण मैं आई कुछ और नहीं संग मैं अँसुवन की धार हूँ लाई करो कृपा है जगजननी, मेरा भी उद्धार करो बीच भँवर में अटकी नैया ,माता रानी बेड़ा पार करो... नेहा शर्मा
वक़्त की रेत पर अपनी पहचान छोड़ जाता है अपनी सीरत से मुसाफिर यादगार बन जाता है क्या लेकर आये थे और क्या लेकर जाना है अपने सुकर्मों से अपनी पहचान बनाना है...
मुद्दतों बाद जो गुजरे तेरी गली से हम मुरझाए हर जख्म जिंदा हो उठे दफन कर दिया था जिन अहसासों को आज भी तेरे महकती खुशबू से खिल उठे नेहा शर्मा