ना लिखता प्रेम प्रियतम का ना मैं श्रृंगार लिखता हूँ। जो दिखता है वही लिखता कि मैं अंगार लिखता हूँ। बना देते हैं जो ब्यापार किसी बेटी की लज्जा को। मैं ऐसे धूर्त लोगों का सदा प्रतिकार लिखता हूँ। अजय कुमार द्विवेदी ''अजय''
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