Sanjay Jain
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*छोड़ आया* विधा : कविता दिलके इतने करीब हो, फिर भी मुझसे दूर हो। कुछ तो है तेरे दिल में, जो कह नही पा रही हो। या मेरी बातें या मैं तेरे को, अब समझ आ नही रहा। तभी तो मुझ से दूरियां, तुम बनाती जा रही हो।। गीत गुन गुने की जगह, तुम उदास हो रही हो। कैसे सम

कुछ तो रब अब तुमको करना पड़ेगा। ताकि दो प्रेमी मिल जाए यहां। एक दूसरे की भावनाओं को वो समझे। रब के द्वारा बनाई जोड़ी वो समझ ले।।

देख कब से रहा तुमको हो जानेमन । पर शायद तेरा ध्यान मुझ पर नहीं। तू किसी और के इंतजार में हैं। पर वो शायद किसी और को देख रहा।।

दोष आंखों का है ? आंखों ने देखा तुम्हें और मन व्याकुल हुआ। अंदर ही अंदर प्यार हमारा उमड़ पड़ा। और दिल मेरा तुम्हें चहाने लगा। अब तुम ही बताओ भला, इसमें आंखों का क्या दोष है ?


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