जड़, शून्यता के केंद्र-बिंदु पर
विस्मित रहते हम।
वो नितदिन करता हृदय-कुंज में
सिंचित ज्ञान अपार है।
कुम्हलाते दम्भ-पथ,तृण-कण-पल्लव,
भ्रांत-पथिक हम।
वो अपरिमित,शुभ्र- ज्ञान-सागर,
कोकिल करता ज्ञान- संगीत है।
~कविता भट्ट 'मनमुग्धा '
“ सृष्टि के सारे अपवाद हृदय में परिभाषित होते हैं जैसे बाहर का सागर जितना खारा होता है मन का सागर उतना ही मीठा I”
@कविता भट्ट ‘मनमुग्धा’