Rudra Prakash Mishra
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शेर बकरे को खा रहा था । खाते समय उसके मुँह में उसकी हड्डी चुभ गई ,,,,,,,,,,,,घाव हो गया राजा के खिलाफ इस जानलेवा हरकत के लिये पंचायत बुलाई गई । तमाम राजभक्तों ने एक स्वर में इस घटना की निंदा की ।। उस बकरे और उसके परिवार के खिलाफ आरोप सिद्ध हुआ और उन्हें इसकी सजा दी गई ।।।।।।

जिस स्थान पर कोई जीव भूख से तड़पता हो , उस स्थान के पुजारी का ईश्वर को छप्पन भोग लगाने का कोई हक नहीं होना चाहिए और ना ही उस स्थान के ईश्वर को छप्पन भोग खाने का । रूद्र

किस्मत का एक और इम्तहान देखकर बिखरा हुआ अपना सभी सामान देखकर यूँ तो हरेक खुश था , हुई जम के बारिशें मैं रोया अपना टूटता मकान देखकर

गम बिछड़ने का है बहुत लेकिन तुझसे मिलने की अब ख्वाहिश न रही रूद्र प्रकाश मिश्रा

क्या कहें , क्या से क्या समझ बैठे खुद को जाने वफ़ा समझ बैठे हमने जो उनको कह दिया पत्थर वो तो खुद को खुदा समझ बैठे रूद्र प्रकाश मिश्र

जिन्दगी हकीकत है , जिन्दगी फ़साना भी । छाँव है सुखों का ये , ग़म का आशियाना भी । रूप अनगिनत इसके , रँग अनगिनत इसके । ज़िन्दगी अकेलापन , जिन्दगी ज़माना भी । रूद्र प्रकाश मिश्र

नाज तेरे नहीं उठाएँगे तो , तुझको हरदम नहीं मनाएँगे तो , जिन्दगी , कुछ तो कद्र कर अपनी , फिर ना आएँगे चले जाएँगे तो । रूद्र प्रकाश मिश्र

गिरा जो आँख से , गिरते ही छन से टूटा वो । ख्वाब नाजुक था इस कदर , कि जैसे हो शीशा ।। रुद्र प्रकाश मिश्र

शब तलक जलती रही अब बुझ रही है याद है , तन्हाईयाँ बाकी बची है अब तलक उम्मीद है आएगा कोई दूर कुछ परछाइयाँ बाकी बची है Rudra Prakash Mishra © ..


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