Geeta Upadhyay
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रोज डे प्रपोज डे चॉकलेट डे फ्रेंडशिप डे Valentine Day क्या है यह सब अपनी संस्कृति को भूल कर हम क्यों पाश्चात्य की ओर भाग रहे हैं अपने आपको क्यों दोहरी जिंदगी में बांट रहे हैं नींद में सोए हैं पर लगता है कि जैसे जाग रहे हैं

हमने न देखा कभी उस ओर जहां बेकाबू होती है दिल की डोर

क्यों करें याद उन्हें भुला नहीं पाते जिन्हें

कहीं संगेमरमर के महल भी कम पड़ते हैं रह गुजर के लिए । तो कहीं तिनकों के आशियां भी काफी है उम्र भर के लिए।

कभी तनहाई में गर आ जाए याद हमारी । तो समझना के हम ही हैं जो धड़कन बनकर धड़कते हैं तुम्हारी।

कहते हैं हिसाब मांगती है जिंदगी मगर अपना तो गणित कमजोर है यारों

सदियों बाद अनारकली की आत्मा ने फरमाया गलती तो सलीम की भी थी मुझे ही क्यों चिनवाया

कहीं सागर से नहीं बुझती है प्यास कहीं शबनम भी दम रखती है प्यास बुझाने की किन बंदिशों में बंधी है मुस्कान तेरी मैंने मुकम्मल कोशिश है कि इसे पाने की खुली आंखों से भी सोया रहा में बंद करके भी नींद नहीं आजकल अब तो जिद भी नहीकरती है मां लोरिया सुनाने की


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