akash bansirar
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तुम्हारी रूह तक मेरी पहचान है, कितना छुपाओगे खुद को ? आंखों में जो भरें आंसु है, कितना रोक पाओगे उनको ? अब जो टूटे हो तो बिखर जाओ मेरे बाहों में कितना सम्भाल पाओगे खुद को ? आखिर कितना दूर करोगे खुद को ?

थक चुका हूं, खुद से झूठ बोलते बोलते। थक चुका हूं, खुद को समझाते समझाते। प्यार हो तुम मेरा, थक चुका हूं, तुझसे से नफ़रत जताते जताते।।

वक़्त तो दिजिए ज़नाब, ये उसूल भी टूटेंगे आप खरीदिए तो, यहां ईमान तक बिकेंगे ये दुनिया बाजार है ज़नाब, यहां लोग तक बिकेंगे।


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