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Share with friendsकभी कभी ख्वाईश होती है कि किसी मुरझाए चेहरे की हँसी लाकर दे दूँ , अपने लिये ना जी कर दूसरों के लिये जी लूँ
चलो आओ हम सब मिलकर अपने भारत को फिर से अमन और शन्ति का चमन बनायें, रक्त अवशोषित धरती को फूलों का रस पिलायें
वेतन जो की कर्मरुपी फल है इस फल को जब किसी भूखे प्यासे, बे सहारे के साथ मिल बांट कर खाया जाता है उस दिन ये वेतन प्रसाद बन जाता है
आधुनिकता और विकास के दौर में ये कैसी विडम्बना है कि एक गरीब वेतन की जगह आज भी रोटियाँ गिनता है कि सबके हिस्से में आ जायेगी कि नहीँ