बचपन में दुनिया की डर से, खुद को कैद कर लिया, जब समझ आई खुद की पहचान, खुद को खुद में ही समेट कर रख लिया, थोड़ी हिम्मत जुटाई जब खुद के लिये लड़ने की, तो दुनिया की डर से अपनो ने भी किनारा कर लिया, हमारे एहसासों को भी तो समझो कोई, हमने इंसान होकर कौन सा गुनाह कर दिया.. #gay
भुलाकर जिस्म की भूख कोई, बाते दिलों की करेगा क्या? खूबसूरत नही हूँ शक्ल से ज़रा, बताओ किसी को चलेगा क्या? कभी वो सिमट जायें बाहों में मेरी, कभी मैं सिर रख दूँ काँधे पर उसके हवस के शहर में कहीं ना कहीं, मुझे कोई मुझ-सा मिलेगा क्या ?
भुलाकर जिस्म की भूख कोई, बाते दिलों की करेगा क्या? खूबसूरत नही हूँ शक्ल से ज़रा, बताओ किसी को चलेगा क्या? कभी वो सिमट जायें बाहों में मेरी, कभी मैं सिर रख दूँ काँधे पर उसके हवस के शहर में कहीं ना कहीं, मुझे कोई मुझ-सा मिलेगा क्या ?