शब्दों को समझना और समझाना चाहती हूँ ऐ जिंदगी तुझे मुस्कुरा के जीना चाहती हूँ
Share with friendsवैसे तो अब मिलना होता साल दो साल मे कभी पर जरूरत पड़ने पर एक आवाज मे साथ सभी नही जरूरत दोस्ती के लिये किसी खास दिन की हमेशा खुश आबाद रहे रोज दुआओ मे माँगते यही जब जम जाये दोस्तों की मेहफिल मुस्कुराती जिंदगी कुछ दर्द दोस्त से कह पाते, बिन दोस्त अधूरी हर खुशी
एक इच्छा पूरी होते ही दूसरी जग जाती है और हाथ लगी शांति अशांति मे बदल जाती है ये ही मानव रचित प्रकृति है शांति छुपी मन के अंदर, ऐशो आराम मे ढूंढी जाती है
माता पिता की डाँट उनका समझाना हम बच्चों को कभी कभी खटकता जरूर है पर वही सीख बन कभी ना कभी याद आता जरूर है
हम तो बारिश मे आज भी कागज की नाव चलाते हैं लोग क्या कहेंगे छोड़ बच्चों के संग भीग भी जाते है फिर चाय पकौडे़ माँ की डाँट पूरा बारिश का लुत्फ उठाते हैं
ये जो भूकंप के झटके है, पृथ्वी के संदेशे है मानव के गलत कदम मुझको बहुत खटके है छूट रहा मेरा भी संयम मानव क्यों न समझे रे पृथ्वी प्रकृति पर्यावरण खुद से भी क्यों खेले रे!!
पेड़ लगाओ, साइकिल चलाओ, पानी बचाओ पोलिथीन का त्याग , वन-पशु- पक्षी का ध्यान पर्यावरण से ही जीवन, रखो इसे स्वच्छ संभाल
माता पिता की डाँट उनका समझाना हम बच्चों को कभी कभी खटकता जरूर है पर वही सीख बन कभी ना कभी याद आता जरूर है