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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा
Literary Colonel
AUTHOR OF THE YEAR 2021 - NOMINEE

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जहां तस्वीर बदलती है,वहां कलम लिखती है। जहाँ अन्याय होता है, वहाँ विधि बोलती है।

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जिंदगी क़ी राह में शब्दों का बड़ा खेल है, शब्दों अहसास कर्म तय करता मेल है.. ✍️

कभी मुश्किलों के दौर से, गुजरा है एक जमाना, आज खैरियत के दौर में, आदमी का नहीं है ठिकाना। बाबा

उसको मालूम था जिंदगी की राह में तूफाँ खड़ा होगा मगर हम न समझे चलती राह के कदम वो बेवफा होगा बाबा

कभी फुर्सत में सोचना बेवफा मतलब ए यार जिंदगी में सच्ची मोहब्बत नहीं मिलती हर बार। बाबा

जिंदगी की सांसों का ताबूत एक दिन जमीं में मिला देता है। बाबा

आज आदमी मतलब ए फरेब जैसा है, उल्फतों से जिसकी नियत में खोंट पैदा है, वो आदमी सजदा कर नहीं सकता कभी, जिसका साथ मतलब ए फरेब जैसा है। बाबा

अगर जिंदगी की राह के साथी ना होते, तो भला हम तुम्हें खोने का गम क्यों करते।

अगर जिंदगी की राह के साथी ना होते, तो भला हम तुम्हें खोने का गम क्यों करते।

पहले दिल पढ़ता था अब चेहरे पढ़ता हूं आदमी दिल नहीं चहरे बदलने में माहिर है


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