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Kunwar Yuvraj Singh Rathore
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हम गुमशुदा थे , अपने आशियाने के मद में, पर क्या पता था, कि ये मौसम भी , हमसे खफा होगा।। ✍🏻 Author ✍🏻 K. Yuvraj Singh Rathore

अजीब सा मंजर है, ऐ जिंदगी, कुछ इस कदर अकेले से हैं सफ़र में, दुःखो का मंज़र ही है हर तरफ, ऐ मेरी हमदम, मेरी जिंदगी, बता मुझे, अब किसके आगे रोएं, अकेले तो , खुलकर रोया भी नहीं जाता। ✍🏻 Author ✍🏻 K. Yuvraj Singh Rathore

मुस्कान भी गुफ्तगू का जरिया है, कुछ छिपाने के लिए , हसना पड़ता हैं, तो हसने के लिए, बहुत कुछ छिपाना पड़ता हैं, बस जायज़ था तो दिल का दर्द, कम्बक्त मैं रोता रहा, और तस्वीर हस्ती रहीं 😶 ✍🏻 Author ✍🏻 K.Yuvraj Singh Rathore

मुस्कान भी गुफ्तगू का जरिया है, कुछ छिपाने के लिए , हसना पड़ता हैं, तो हसने के लिए, बहुत कुछ छिपाना पड़ता हैं, बस जायज़ था तो दिल का दर्द, कम्बक्त मैं रोता रहा, और तस्वीर हस्ती रहीं 😶 ✍🏻 Author ✍🏻 K.Yuvraj Singh Rathore

मुस्कान भी गुफ्तगू का जरिया है, कुछ छिपाने के लिए , हसना पड़ता हैं, तो हसने के लिए, बहुत कुछ छिपाना पड़ता हैं, बस जायज़ था तो दिल का दर्द, कम्बक्त मैं रोता रहा, और तस्वीर हस्ती रहीं 😶 ✍🏻 Author ✍🏻 K.Yuvraj Singh Rathore

मुस्कान भी गुफ्तगू का जरिया है, कुछ छिपाने के लिए , हसना पड़ता हैं, तो हसने के लिए, बहुत कुछ छिपाना पड़ता हैं, बस जायज़ था तो दिल का दर्द, कम्बक्त मैं रोता रहा, और तस्वीर हस्ती रहीं 😶 ✍🏻 Author ✍🏻 K.Yuvraj Singh Rathore

अनुभूति किसी के पराधीन नहीं हो सकती अनुभूति प्रकृति की अमूल्य देन हैं, हा! अनुभूति को परिष्कृत तथा अपरिष्कृत करना व्यक्ति की मनुष्याकृति व मनुष्यातीत की निजता हैं। अनुभूति को परिष्कृत करना एक सभ्य मानव का प्रमाण हैं जबकि अपरिष्कृत असभ्यता का प्रमाण।


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