Hemant Kumar Saxena
Literary Brigadier
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छात्र , समाजसेवी , कवि

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मां दे बता मुझे, तुझे चिंता ये कैसी है, नहीं हूं तुझसे दूर, दूर न मुझसे रहती है, न बनूं कटु न कटुर स्वभाव हो अपना, मीठी तान हो अपनी, मिथ्य हो सपना, चला हूं रहा पे तेरी, तूही जो कहती हैं, बड़ा आंचल से तेरे,छाया सर पे रहती है,

चल उठ शिशिर और फिर चल, अभी कई इन्तकाम वाकी हैं, ए इन्सान क्यूं डरता है पतंगों से, अभी तो कई मुकाम वाकी हैं, आज मिन्नत है जिद्दी मन से, की छूकर दिखा आॅसमां को, आज जीता है दिल अपनों का, अभी कई इनाम वाकी हैं , - कवि हेमन्त कुमार सक्सेना

प्रेमिका के साथ में, बाजार जब गया, गोभी के फूल को, गुलाब समझ वैठा, घर में रखी पैप्सी, की बोतल को भी, कांच की बोतल में भरी, शराब समझ वैठा, - कवि हेमन्त कुमार सक्सेना


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