खुद के संजोए सपनों का त्याग कर दिया मैंने अपनी ज़िंदगी को वक्त के हवाले कर दिया मैंने फिर भी दिल को एक पल का चैन नहीं मिलता हे ईश्वर ये तुने ठुकरा दिया कितना मान दिया मैंने। M.S.Suthar
उलझनों में उलझकर रह जाती है ज़िन्दगी अनचाहे रिश्तों में ठहर जाती है ज़िन्दगी घुटन सी होती है हर पल निकलने की शुरू तो हुई न जाने कब खत्म होगी ज़िन्दगी। M.S.Suthar
ज़िन्दगी एक खेल ही तो है मज़ाक मज़ाक में मज़ाक बन जाता है रिश्तों का बंधन सनातन संस्कार है कभी कभी पांव की जंजीर बन जाता है। M.S.Suthar
कुछ विशेष कुछ खास है वो हमारे लिए दिल में हलचल होती है बस तुम्हारे लिए मिलने को दिन भर बहुत लोग मिलते हैं जाने क्यूं तुम हरदम खास हो हमारे लिए। मानसिंह सुथार .....