आओ बोयें स्वप्न प्रेम के
नीति-गंगा में नहाएं हम,
न रहे कोई भूखा-प्यासा क्षुधा सबकी मिटाएं हम ।
निशा नंदिनी
बीज डाला धरती में
नन्हा पौधा उग आया
हाथ मिलाने मानव से
कैसा खिलखिलाया।
निशा नंदिनी
जल ही प्रारंभ,मध्य और अंत
कहते ज्ञानी-विज्ञानी और संत
इसका नहीं है कोई आकार
जल ही जीवन का मूलाधार।
निशा नंदिनी
रहकर पचास बरस साथ
हम समझ न सके उसे।
निकला इतना खुदगर्ज
हँसते हँसते दर्द पी गया ।
निशा नंदिनी
नरक में ले जाता है
अंहकार का द्वार।
जीत सको तो जीत लो
संस्कार से संसार।
निशा नंदिनी
अंधकार को क्यों धिक्कारे
अच्छा है एक दीप जलाये।
कर्मों की अद्भुत ज्योति से
अपना जीवन पथ चमकाये।
निशा नंदिनी
भाग्य बनाना आसान नहीं है।
हर किसी के बस का यह काम नहीं है।
निशा नंदिनी
जरा सी रंजिश पर न छोड़ो
अपनो का साथ।
अपनो को अपना बनाने में
एक उम्र बीत जाता है।
निशा नंदिनी
दूसरे के भरोसे बहुत जी लिए अब तक।
चलो अब अपने भरोसे कुछ जी कर दिखाएँ।
निशा नंदिनी