Swapnil Ranjan Vaish
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अपने होने का एहसास दे जाना पुकारा बहुत तुम्हें हर दिन कभी तो यादों का नाज़राना दे जाना - स्वप्निल " स्वप्न "

आज एक गुनाह कर लिया सूखा गुलाब देख तुम्हें याद कर लिया - स्वप्निल " स्वप्न "

माँ के चरणों में जन्नत होती है हर किसी को जो नसीब नहीं होती है बिन माँ के कैसा बचपन उम्र वो सिर्फ यूँ ही कटी होती है माँ ने सजाई बचपन की बगिया हर दुख की घड़ी माँ से डरी होती है आँचल की छाव ने ठंडक पहुँचाई दुनिया में अनुभव की धूप जब तेज़ होती है यूँ ही मेरे जीवन को पूरा करती रहना माँ के आशीष से हर कमी दूर होती है

माँ का ना कोई सानी दामन में खुशहाली दुआओं की भरी थाली माँ हर सवाल की जवाबी

माँ की हँसी गूंजे जिस आँगन वहाँ ना रहता उदास कोई मन वो मुस्कुराये तो हर दर्द मिट जाता उसके आशीष से घर में रहता प्रेम धन


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