खोल के देखा है मैंने ज़ख़्मों को बार -बार
किसी अपने के ही दस्तख़त मिले हर बार
शहला जावेद
हादसों से नहीं हारता है बशर
होंसला ना जाए कहीं बिखर
बस इससे लगता है डर
शहला जावेद
यूँ उसके जर्फ को में आज़माती हूँ
उससे हार कर उससे जीत जाती हूँ
शहला जावेद
खोल कर देखा है ज़ख़्मों को बार बार
मिले हैं अपनो के ही दस्तख़त हर बार
शहला जावेद
उस बुलंद इमारत की शान तो देखो
दफ़न है उसमे कितने मकान तो देखो
शहला जावेद
ख़ाली घर अब माँ बाप को बरबाद कर रहे हैं
बच्चे अब पी जी होस्टल को आबाद कर रहे हैं
😒😒
शहला जावेद