नित नियम से देखो जैसे
अरुणोदय हो जाता है
और फिर पूरी ज़िम्मेदारी से
शाम तले ढल जाता है
ऐसे ही जग में प्यारे
तुम भी अपना काल करो
दीन दुखियों की सेवा कर
मुश्किल सबकी आसान करो
चुप रहकर बातों को यूँ न विराम दीजिए
सिलसिला बातों का जारी रहे कुछ तो सवाल कीजिये
रोते गाते तो जी ही रहे हैं मगर
हँसते खेलते हुए मरने की ख्वाहिश है मेरी
अपने वजूद से शिकायत कैसी
बेदर्द ज़माने की ऐसी की तैसी