None
बयाँ करूँ भी तो क्या करूँ ना वो अल्फाज समझते हैं ना ही जज़्बात समझते हैं रहते हैं हम एक ऐसे समाज में जहाँ लोग इश्क़ को भी अपराध समझते हैं....