Sudhirkumarpannalal Pratibha
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समझ जितना हीं उच्चतर होगा मनुष्य उतना हीं महान होगा

कल्पना जीवन का आवश्यक अंग है इसके बिना जीवन बिन पतवार के नाव की तरह है

जीवन में आशावादी होना बहुत जरुरी है

व्यक्तित्व मनुष्य की निजी पहचान है व्यक्तित्व में जितना हीं निखार आएगा मनुष्य उतना हीं निखरेगा

विश्वसनीयता हमेशा बना रहे टूटने ना पाए कोशिश ऐसी करनी चाहिए

आदर देना मनुष्य के संस्कार की चीज है

विकास जीवन का आधार है इसके बिना जीवन में निरसता छा जाती है

विकास अगर बढ़ते क्रम में रहे तो जीवन में आनंद का संचार होता है।

विकास और विनाश दोनो हीं अनवरत प्रक्रियाएं है और दोनों एक दुसरे के पूरक है


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