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रक्त की नदियों से चली अभिज्ञता की नाव। जिसका ना कोई अंत है, ना किनारों की छांव। चीरकर गर निकलना चाहोगे इनसे तो, गन्तव्य ही मिलेगा, भर जाएगें घाव।