सौरभ मिश्रा
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मैं एक छात्र हूं। अपने जिन्दगी में हुए अनुभवों को शब्दों में पिरोकर कविताएं और कहानियां लिखता हूं।

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सारे शहर को है पता, कि हम उनसे मुहब्बत करते हैं। बस कसक इतनी सी है कि उन्हें इस बात की खबर तक नहीं।

🇮🇳🇮🇳जय हिंद जय हिंदी 🇮🇳🇮🇳 तुम्हारे कर्म हैं इसकी शान, तुम्हारे धर्म हैं इसकी मान। तुम इससे हो, ये तुमसे है, इस बात का रखना ध्यान।।

वाह हिंदी, आह हिंदी, भावनाओं की प्रवाह हिंदी। दीप्ति हिंदी, तृप्ति हिंदी, हिंदी निज उर अनुरक्ति भी।

अपने आज के लिए कल को मत कोसो। बल्कि कुछ ऐसा करो, कि कल के लिए आज को न कोसना पड़े।

वो पूछे मेरा हाल तो, कुछ न बताना उसे । जिद करे ज्यादा तो, तुम न सताना उसे ।। चाहो तो बता देना सब कुछ मगर । करते हैं हम प्यार अब भी, अब न जताना उसे।।

ये दिन ढल जाए, तो कुछ कहूं , ये शाम गुजर जाए, तो कुछ कहूं। वो आकर रातों में बैठे पास, और पूछे मुझसे, तो कुछ कहूं ।।

जब जब तू मेरे साथ न रहा, मुझे लगा मैं हार रहा । आजा अब मुझे जीता दे, देख कब से तेरा रास्ता निहार रहा।।

तेरी खामोशियों से मैं, बात हिस्से की सुन रहा हूं , अपने आंसूओं से मैं, तेरी खुशियां बुन रहा हूं । तू ना मिली, तो मुझको कोई गम नहीं , तेरी नामौजूदगी से मैं, तेरी मौजूदगी चुन रहा हूं ।।

सोचो जरा क्यूं खुदा ने, इस कायनात को बनाया। क्यूं राख से इंसान, और इंसानों को राख बनाया ।।


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